Andha gidh panchtantra stories : अंधा गिद्ध

एक पेड़ पर बहुत सारी चिड़ियाँ रहती थी। एक दिन उसी पेड़ पर एक खोह में रहने के लिए एक अंधा गिद्ध आ गया। सभी चिड़ियों ने उसका स्वागत किया। गिद्ध बूढ़ा भी था, इसलिए सभी पक्षियों ने तय किया वे अपने-अपने भोजन में से उसे भी दे दिया करेंगे। बदले में अंधे गिद्ध ने तय किया कि वह उन सब पक्षियों के बच्चों की देखभाल किया करेगा। एक दिन, एक बिल्ली उसी पेड़ के पास से गुज़री। खुशी से चहचहाते हुए नन्हें चूजों की आवाज़ बिल्ली को सुनाई दी। जब चूज़ों की नज़र बिल्ली पर पड़ी तो वे डर के मारे चिल्लाने लगे! अंधा गिद्ध तुरंत जोर से चिल्लाया, “कौन है ?”

चालाक बिल्ली समझ गई कि पक्षियों के इन नन्हें-नन्हें बच्चों को वह तभी खा पाएगी, जब वह गिद्ध से दोस्ती कर ले। बिल्ली गिद्ध से बोली, “मैंने नदी किनारे आने वाले सभी पक्षियों से आपकी बुद्धिमानी की बहुत प्रशंसा सुनी है। आपकी प्रशंसा सुनकर ही मैं आपसे मिलने आई हूँ, भैया।” अपनी प्रशंसा सुनकर गिद्ध बहुत प्रसन्न हुआ। उसने पूछा, “अच्छा! वैसे तुम हो कौन ?” बिल्ली बोली, “मैं बिल्ली हूँ।” गिद्ध यह सुनकर जोर से चिल्लाया, “यहाँ से तुरंत भाग जाओ, वरना मैं तुम्हें खा जाऊँगा।” चालाक बिल्ली ने एक और चाल सोची।

“मैं नदी के पार रहती हूँ। मैं माँस भी नहीं खाती। मैं आपको हर दिन नदी में स्नान कराने ले जाया करूँगी,” वह बोली।

“और वैसे भी मुझे नहीं लगता कि आप इतने समझदार होकर भी अपने एक मेहमान को खाएँगे।”

बूढ़े गिद्ध ने जवाब दिया, “मैं तुम्हारा भरोसा कैसे करूँ, तुम तो पक्षियों को खा जाती हो!”

“अरे नहीं, भैया!” बिल्ली बोली। “जो दूसरों को मारते हैं, उनको तो भगवान दंड देता है। जब जंगल में इतने स्वादिष्ट फल-फूल मौजूद हैं तो मैं अपना पेट भरने के लिए किसी को क्यों मारूँगी ?”

गिद्ध उसकी बातों में आ गया और उसने पेड़ की उसी खोह में उसे अपने साथ रहने की अनुमति दे दी। अब बिल्ली हर दिन एक चूजे को खा जाती और अंधे गिद्ध को पता तक नहीं चलता। जल्दी ही पक्षियों को महसूस हुआ कि उनके कुछ बच्चे कम हो रहे हैं! उन्होंने अपने बच्चों की तलाश करना शुरू कर दिया। जैसे ही बिल्ली को यह बात पता चली, वह पेड़ से निकलकर जंगल में भाग गई। अब बड़े पक्षी बूढ़े गिद्ध के पास अपने बच्चों के बारे में पूछने आए। गिद्ध सो रहा था। पक्षियों ने उसकी खोह में इधर-उधर देखा, तो वो हैरान रह गए ! वहाँ पर हड्डियों का ढेर लगा था! बिल्ली पक्षियों के बच्चों को खा जाती थी, और उनकी हड्डियाँ गिद्ध की खोह में छोड़ देती थी।

सभी पक्षी गिद्ध के ऊपर बहुत गुस्सा हुए। उन्हें लगा कि गिद्ध ने उनके साथ विश्वासघात किया है और उन्हें मूर्ख बनाया है। उन्हें लगा कि गिद्ध ने ही उनके बच्चों को खा लिया है! वे जोर-जोर से रोने-चिल्लाने लगे और सबने मिलकर सोते हुए गिद्ध पर हमला कर दिया। बेचारे गिद्ध को समझ ही नहीं आया कि ये पक्षी क्यों उस पर टूट पड़े हैं उसे नोच रहे हैं। और क्यों इतनी बेरहमी से

अंत में, सबने उसे बाहर निकाल दिया। अब उसके पास न कोई घर था और न कोई साथी।

सीख

*किसी का स्वभाव नहीं बदलता

*चिकनी चुपड़ी बातों में नहीं आना चाहिए

*किसी और के गलतियों की सजा भी आपको भुगतनी पड़ सकती है।

*अपने संगत का ख्याल रखें।

 

Hathi Raja aur budhiman khargosh : हाथी राजा और बुद्धिमान खरगोश।

बहुत समय पहले की बात है। हाथियों के राजा गजराज का जंगल में राज था। एक बार बारिश बिलकुल नहीं हुई। उसके राज्य में सारी झीलें सूख गईं। सारे हाथी गजराज के पास सहायता माँगने आए। वे सब पानी के बिना मरे जा रहे ये! गजराज ने कहा, “चिंता मत करो! मैं तुम लोगों का राजा हूँ। तुम लोगों की आवश्यकता का ख्याल रखना मेरा कर्तव्य है। तुम लोगों को पानी की कभी कोई कमी नहीं होगी। मैं एक ऐसी गुप्त झील के बारे में जानता हूँ, जो हमेशा पानी से भरी रहती है। चलो, वहीं चलते हैं।”



सारे हाथी उसी झील की ओर चल दिए, लेकिन रास्ते में मिलने वाले खरगोशों को वे अपने पैरों तले रौंदते गए। ये खरगोश वहाँ कई सालों से रहते आए थे। सैकड़ों खरगोश मर गए और हज़ारों घायल हो गए।

खरगोश बहुत चिंतित हुए। उनमें से एक ने कहा, “हाथी बहुत बड़े और भारी हैं। हम तो उनके सामने चीटियों जैसे हैं। वे तो अब हर दिन पानी के लिए उसी झील की ओर जाया करेंगे और हमें इसी तरह से कुचलते रहेंगे। उनकी तो निगाह तक हमारे ऊपर नहीं पड़ेगी! अगर हमने जल्द ही कुछ नहीं किया तो हम सब मारे जाएँगे। हमें किसी न किसी तरह से हाथियों का झील जाना बंद कराना पड़ेगा। समस्या यह है कि वे भी पानी की कमी से परेशान हैं, इसलिए वे हमारा अनुरोध नहीं मानेंगे।”

एक चतुर खरगोश ने एक समझदारी भरी योजना बनाई। रात को वह गजराज के पास गया। वह बहुत सतर्क था क्योंकि अगर गजराज गुस्सा हो जाता तो वह सबको मार डालता ! उसने पूरे आदर के साथ गजराज को प्रणाम किया और बोला, “महाराज, मुझे चंद्रदेव ने भेजा है। यह झील उनकी है और उन्होंने आप लोगों को इस झील का पानी पीने से मना किया है।”

“अच्छा! लेकिन तुम्हारे चंद्रदेव हैं कहाँ?” आश्चर्य में पड़े गजराज ने पूछा।

खरगोश गजराज को उसी झील के पास ले गया और झील में चंद्रमा की परछाई दिखाते हुए बोला, “महाराज, वे रहे चंद्रदेव! वे दिख रहे हैं न?”

गजराज ने झील में देखा और विनम्रतापूर्वक जवाब दिया, “हाँ, हाँ, दिख रहे हैं।”

“महाराज, अब चुपचाप यहाँ उनको प्रणाम करके चले जाइए। अन्यथा वे अगर नाराज़ हो गए तो आपके और आपकी प्रजा के लिए बहुत बुरा हो सकता है,” खरगोश बोला।

खरगोश की बात पर विश्वास करते हुए गजराज ने चंद्रमा की परछाई को प्रणाम किया और जल्दी से वहाँ से चला गया। उसके बाद उस झील पर हाथी कभी नहीं आए और सारे खरगोश अपने-अपने स्थानों पर हँसी-खुशी रहने लगे।

सीख

बुद्धि से समस्या का समाधान ढुंढ़ा जा सकता है।

 

दोस्तों यहां दी गई जानकारी किताबें, इंटरनेट और मेरे दृष्टिकोण पर आधारित है किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी हूं । किसी भी प्रकार की त्रुटि की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कमेंट में आप अपना बहुमूल्य विचार साझा कर सकते हैं। जिसके लिए मैं आपका हृदय से आभार रहूंगा, धन्यवाद।

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