OR FOUNDATIONS

Hiran or hirni panchtantra Stories : हिरन और हिरनी का पंचतंत्र की कहानियां

 

Hiran or hirni panchtantra Stories : हिरन और हिरनी का पंचतंत्र की कहानियां

**हिरन और हिरनी

एक जंगल में एक बहुत सुंदर हिरनी रहती थी। उसकी त्वचा मुलायम और लाल-भूरी थी। उसकी आँखें बड़ी-बड़ी और चमकीली थीं। एक दिन, वह जंगल में घास चर रही थी कि एक पहाड़ी हिरन की निगाह उस पर पड़ी। हिरन को उससे प्यार हो गया। अब वह हिरन दिन-रात उस हिरनी के पीछे लगा रहता। एक बार वह उसी हिरनी के पीछे-पीछे गाँव तक चला गया। उसने किसी तरह के खतरे तक पर ध्यान नहीं दिया। कुछ कदम चलने के बाद हिरनी को लगा कि कोई मनुष्य आगे कहीं छिपा है। उसे लगा कि हो सकता है कहीं कोई जाल भी लगा हो। खतरा समझकर पहले उसने हिरन को आगे जाने दिया। वहाँ वास्तव में जाल ही था, जिसमें हिरन फँस गया।

आकर्षण से पहले तो कई बार प्रसन्नता का आभास होता है लेकिन बाद में उदासी ही हाथ आती है।

**मूर्ख सारस और केकड़ा

एक बड़े बरगद के पेड़ पर बहुत सारे सारस रहते थे। वहीं पर पेड़ के एक बिल में एक साँप भी रहता था। साँप सारस के छोटे-छोटे बच्चों को खा जाता था। जब सारस को पता चला कि साँप उसके बच्चों को खा जाता है तो वह रोने लगा। उसके रोने की आवाज़ सुनकर

एक केकड़ा वहाँ आ पहुँचा और उससे रोने का कारण पूछने लगा। सारस ने उसे पूरी बात बताई और उससे अनुरोध किया कि वह निर्दयी साँप से छुटकारा पाने का कोई तरीका सुझाए। केकड़े ने अपने आपसे कहा, “ये सारस तो जन्म से ही हमारे शत्रु होते हैं। मुझे इन्हें गलत सलाह देनी चाहिए।”

इस प्रकार, केकड़े ने सारस को सलाह दी, “नेवले के बिल से लेकर पेड़ तक माँस के टुकड़े बिखरा दो। नेवला उन टुकड़ों के पीछे चलता चलता यहाँ तक आ जाएगा और साँप को मार डालेगा।”

सारस ने केकड़े की सलाह मान ली। नेवला आया और उसने साँप को तो मारा ही, साथ में सारे सारसों को भी मार डाला। इसीलिए कहा गया कि जो अपने मित्र न हों, उनसे सलाह नहीं लेनी चाहिए।

**गधा और धोबी

एक निर्धन धोबी था। उसके पास एक गधा था। गधा काफी कमजोर था क्योंकि उसे बहुत कम खाने-पीने को मिल पाता था।

एक दिन, घोदी को एक मरा हुआ बाघ मिला। उसने सोचा, “मैं गधे के ऊपर इस बाघ की खाल हाल दूंगा और उसे पड़ोसियों के खेतों में चरने के लिए छोड़ दिया करूँगा। किसान समझेंगे कि वह सचमुच का बाघ है और उससे डरकर दूर रहेंगे और गधा आराम से खेत चर लिया करेगा।”

धोबी ने तुरंत अपनी योजना पर अमल कर डाला। उसकी योजना काम कर गई।

एक रात, गधा खेत में चर रहा था कि उसे किसी गधी की रैंकने की आवाज सुनाई दी। उस आवाज़ को सुनकर वह इतने जोश में आ गया कि वह भी जोर-जोर से रेंकने लगा।

गधे की आवाज़ सुनकर किसानों को उसकी असलियत का पता लग गया और उन्होंने गधे की खूब पिटाई की!

इसीलिए कहा गया है कि अपनी सच्चाई नहीं छिपानी चाहिए।

**हाथी और चूहे

एक बड़ी झील के पास बहुत सारे चूहे रहते थे।

एक दिन वहाँ हाथियों का एक झुंड आया। हाथियों के पैरों तले दबकर सैकड़ों चूहे मर गए।

बचे हुए चूहे बहुत चिंतित हुए। चूहों के सरदार ने कहा, “हमें इन हाथियों से दया का अनुरोध करना चाहिए।”

सारे चूहों ने मिलकर हाथियों के मुखिया से अनुरोध किया, “आप लोगों के झील जाते समय हमारे सैकड़ों साथी आप लोगों के पैरों तले दबकर मर गए। हमारा अनुरोध है कि आप लोग झील जाने के लिए किसी दूसरे रास्ते का प्रयोग करें।”

हाथियों का मुखिया मान गया।

एक दिन, राजा ने जंगल के सारे हाथियों को पकड़ने का आदेश दिया। जंगल में जाल लगा दिए गए। एक को छोड़कर सारे हाथी जाल में फँस गए। बचा हुआ हाथी चूहों के सरदार के पास पहुँचा और उससे सहायता माँगने लगा। सभी चूहे तुरंत जालों की ओर भागे। वहाँ पहुँचते ही सभी ने जल्दी से अपने नुकीले दाँतों से जालों को कुतरना शुरू कर दिया। देखते ही देखते जाल कट गए और सारे हाथी मुक्त हो गए।
दया के बदले और अधिक दया मिलती है।

**शिकारी और खरगोश

एक निर्दयी शिकारी खरगोशों को पकड़कर उनका माँस खाया करता था। एक दिन, फिर से उसने एक खरगोश पकड़ा और उसके कान पकड़कर उसे घर ले चला। रास्ते में उसे एक साधु मिला। साधु ने शिकारी से कहा कि वह खरगोश को छोड़ दे और इस भलाई के बदले पुण्य कमा ले।

शिकारी ने इन्कार कर दिया। उसने वहीं साधु के सामने ही निर्दयतापूर्वक खरगोश की गर्दन काटने का निश्चय किया।

उसने थैले से बड़ा धारदार चाकू निकाला। वह चाकू से खरगोश को काटने ही वाला था कि चाकू फिसलकर उसी के पैर पर गिर पड़ा। उसका पैर बुरी तरह से कट गया। वह दर्द से चिल्लाने लगा और उसके हाथ से खरगोश छूट गया।

शिकारी को अपने पापों का दंड मिला। उसका पैर बुरी तरह से कट गया था, इसलिए वह ठीक से चलने लायक भी नहीं रहा और न कभी दोबारा कोई शिकार कर पाया।

**गौरैया की मुश्किल

एक गौरैया ने एक बड़े पेड़ पर सुंदर-सा घोंसला बनाया। एक दिन, बहुत तेज बारिश हुई। एक बंदर पूरी तरह से भीगा हुआ आया। वह ठंड से काँप रहा था। बारिश से बचने के लिए वह पेड़ के नीचे आकर बैठ गया।

बंदर को परेशानी में देखकर गौरैया को बहुत दुख हुआ। उसने बंदर से कहा, “तुम तो बहुत योग्य जानवर दिखते हो। तुम अपने लिए अच्छा-सा घर क्यों नहीं बना लेते ताकि तुम बारिश और सर्दी से बच सको?”

गौरैया की सलाह सुनकर बंदर को गुस्सा आ गया। वह बोला, “चुपचाप बैठ और अपना काम कर।”

बंदर ने अपने आपसे कहा, “अब अगर गौरैया ने अपना उपदेश देना बंद नहीं किया तो मैं उसे अच्छा सबक सिखा दूँगा।” बंदर ने उस गौरैया से कहा, “तुम्हें इतना भी पता नहीं कि किसी को बिना माँगे सलाह नहीं देनी चाहिए?”

बंदर की बात का गौरैया पर कोई असर नहीं पड़ा। वह लगातार उससे मकान बनाने की सलाह देती रही। अंत में गुस्से में आकर बंदर पेड़ पर चढ़ गया और उसने गौरैया का घोंसला नोंचकर फेंक दिया।

** कौआ और सीप

एक दिन एक भूखे कौए को समुद्र तट पर एक सीप पड़ी मिली। सीप के अंदर का माँस निकालने और खाने के लिए उसने सीप को तोड़ने की कोशिश की। सीप नहीं खुली। अब उसने अपनी चोंच से सीप के अंदर का माँस निकालने का प्रयास किया पर वह असफल रहा। अब उसने सीप पर पत्थर मारा, लेकिन फिर भी कुछ नहीं हुआ।

इस बीच, एक और चालाक कौआ वहाँ आकर बोला, “मेरे दोस्त, यह सीप इस तरह से नहीं खुलेगी। तुम मेरी सलाह मानो और इसे अपनी चोंच में दबाकर ऊपर आकाश में उड़ जाओ। वहाँ से इस सीप को चट्टान पर गिरा देना। तभी यह खुल पाएगी।”

भूखे कौए को यह विचार पसंद आया और उसने वैसा ही किया।

कौआ सीप को चोंच में दबाकर उड़ गया और ऊपर जाकर उसने सीप गिरा दी। सीप तुरंत खुल गई लेकिन दूसरे कौए ने तुरंत उसे उठा लिया और उसके अंदर का र्मांस खा गया।

जब पहला कौआ वहाँ पहुँचा तो उसे सिर्फ सीप के खोल के टुकड़े ही पड़े मिले।

** उल्लू का राजतिलक

जब सृष्टि की रचना की जा रही थी, तब सभी प्राणियों ने आपस में मिलकर अपने-अपने

राजा का चुनाव किया। मनुष्यों ने एक सुंदर और योग्य युवक को अपना राजा बनाया। जानवरों ने शक्तिशाली शेर को राजा बनाया और मछलियों ने बड़ी मछली अनादा को अपना राजा बनाया।

पक्षी भी अपना राजा चुनने के लिए एकत्र हुए। उन्होंने उल्लू को अपना राजा बनाया और बोले, “आज इस शुभ अवसर पर उल्लू को अपना राजा चुनते हैं।”

अचानक एक कौआ बीच में बोला पड़ा।

“इस तुनकमिज़ाज उल्लू को राजा क्यों बना रहे है? जबकि यहाँ इतने सारे बुद्धिमान और युवा कौए उपस्थित हैं।”

पक्षियों को भी यह बात सही लगी और उन्होंने हंस को अपना राजा बनाने का निश्चय किया। तभी से कौआ और उल्लू एक-दूसरे से चहुत चिढ़ते हैं और दूर-दूर रहते हैं।

**लालची कौआ

एक कबूतर ने एक व्यापारी के घर की रसोई के पास लटकी रहने वाली एक टोकरी में अपना घौसला बना लिया। व्यापारी ने अपने रसोइए से कहा कि वह उस कबूतर को न भगाए।

एक दिन, एक कौए ने कबूतर से मित्रता कर ली। इस बहाने उसे भी रसोई में घुसने का अवसर मिल गया।

उस दिन, व्यापारी के रसोइए ने मछली का स्वादिष्ट पकवान बनाया। जब रसोइया रसोई से निकला तो कौआ रसोई में पकवान खाने के लिए घुस पड़ा। मछली खाने की कोशिश में ऊपर रखी प्लेट गिर पड़ी और जोरदार आवाज़ हुई।

शोर सुनकर रसोइया दौड़ा-दौड़ा आया। तब तक कौआ मछली का एक टुकड़ा ले चुका था।

कौए की चोंच में मछली का टुकड़ा देखकर रसोइया बहुत क्रोधित हुआ। दौड़कर उसने कौए की गर्दन दबोच ली और उसे उठाकर खिड़की से बाहर फेंक दिया।

** लालची सारस और चतुर केकड़ा

एक बूढ़ा सारस था। बूढ़ा हो जाने के कारण वह शिकार तक सही ढंग से नहीं कर पाता था। उसने एक योजना बनाई। वह झील के किनारे खड़ा हो गया और बोला, “ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की है कि अब बारह वर्ष तक कोई बारिश नहीं होगी।” यह सुनकर सभी घबरा गए और सारस के पास आकर सहायता का अनुरोध करने लगे। सारस बोला, “पास में ही एक बड़ी झील है। मैं तुम लोगों को एक-एक करके उस झील तक छोड़ आऊँगा।” सभी लोगों को उसकी बात सही लगी। अब हर दिन, सारस एक-एक करके सभी जानवरों को एकांत में ले जाता और उन्हें खा जाता। अब केकड़े की बारी आई।

जब सारस अपने उसी गुप्त स्थान के पास पहुँचा तो केकड़े की निगाह मछलियों की हड्डियों के ढेर पर पड़ी। उसने सारस से पूछा, “मुझे तो यहाँ कोई झील नहीं दिख रही। बताओ, कहाँ है झील ?”

“कोई झील नहीं है यहाँ। मैं तुम्हें खाने जा रहा हूँ,” सारस ने जवाब दिया। बहादुर केकड़े ने सारस की गर्दन दबोच ली। जब सारस बेहोश हो गया, तब वह वहाँ से भाग गया। दुष्ट सारस को अपनी करनी का दंड मिल गया।

**कबूतर और भौरा

एक बार एक भौरा पानी की खोज में एक झील के पास गया।

झील के पानी तक पहुँचने के लिए उसे एक तिनके के ऊपर चढ़कर जाना था। दुर्भाग्य से जब वह तिनके पर चढ़ा तो झटके से फिसलकर पानी में गिर पड़ा।

एक कबूतर पास में ही एक पेड़ पर बैठा था। उसने भौरे को संकट में देखा तो एक पत्ती उसने भौरे के पास गिरा दी। भौंरा झट से उस पर चढ़कर निकल आया।

जल्दी ही पत्ती बहकर किनारे तक आ गई और भौरे की जान बच गई।

जब भौरा किनारे पहुँचा, तभी एक शिकारी वहाँ आया। वह कबूतर पर निशाना लगाने ही वाला था कि भौरे की निगाह उस पर पड़ गई। वह तुरंत शिकारी के पास गया और उसके हाथ पर काट लिया। शिकारी दर्द से चिल्लाने लगा और उसके हाथ से बंदूक छूटकर नीचे गिर गई।

इस बीच, कबूतर को उड़ जाने का अवसर मिल गया।

** ब्राह्मण और कोबरा

एक बार एक ब्राह्मण अपने खेत में काम कर रहा था। तभी उसे एक बड़ा कोबरा साँप दिखाई दिया।

वह दूध से भरा एक बर्तन लाया और उसने साँप की बॉबी के पास रख दिया। अगले दिन, उसे उस बर्तन में सोने का सिक्का मिला। अब यही हर दिन होने लगा। ब्राह्मण हर दिन सोने के सिक्के पाने लगा।

एक दिन, उसने अपने बेटे से कोबरा के लिए दूध रख आने को कहा। उसके बेटे ने ऐसा ही किया। जब वह सोने का सिक्का उठा रहा था तभी उसके मन में लालच आ गया। उसने सोचा कि कोबरा को मारकर सोने के सारे सिक्के एक

साथ ही निकाल लिए जाएँ। उसने कोबरे के ऊपर एक लाठी मार दी। कोबरा दूसरी ओर खिसककर अपने को बचा ले गया, लेकिन उसने क्रोध में आकर ब्राह्मण के बेटे को डॅस लिया और उसकी मौत हो गई।

अगले दिन, ब्राह्मण ने फिर से कोबरा के लिए दूध रखा, लेकिन साँप ने उसे नहीं पिया। ब्राह्मण समझ गया कि विश्वास टूट जाए तो उसे फिर से नहीं पाया जा सकता।

** मगरमच्छ और ब्राह्मण

एक बार एक मगरमच्छ एक दलदल में फँस गया। उसने एक ब्राह्मण से अनुरोध किया कि वह उसने निकालकर गंगा नदी में छोड़ दें।

ब्राह्मण ने उस मगरमच्छ को निकालकर एक बोरे में भर लिया। जब वह उसे गंगा नदी में छोड़ने ही वाला था कि मगरमच्छ ने उसे अपने विशाल जबड़े में दबोच लिया।

ब्राह्मण चिल्लाया, “तुम मेरे अहसान का बदला मुझे खाकर चुकाना चाहते हो!”

“क्यों! तुम्हें खाऊँगा नहीं तो मेरा पेट कैसे भरेगा ?” मगरमच्छ

ने जवाब दिया।

“क्यों न हम किसी से फैसला करवा लें?” ब्राह्मण ने कहा। मगरमच्छ मान गया।

ब्राह्मण ने वहीं से गुज़र रही एक लोमड़ी को रोककर उससे अनुरोध किया कि वह उन दोनों का झगड़ा सुलझा दे। लोमड़ी बोली कि पहले दिखाओ कि तुम मगरमच्छ को बोरी में भरकर लाए कैसे थे। अब तीनों वापस उसी दलदल के पास आ गए। ब्राह्मण ने मगरमच्छ को फिर से दलदल में डाल दिया। ब्राह्मण और लोमड़ी मगरमच्छ को उसी में फँसा छोड़कर भाग निकले।

** स्वार्थी मित्र

एक चूहे ने शेर की गुफा के पास अपना घर बनाया। चूहा शेर के शरीर पर चढ़कर उछल-कूद करता रहता था और उसे परेशान करता रहता था। कई बार वह शेर को काट भी लेता था। शेर को बहुत क्रोध आता था, लेकिन चूहा इतना छोटा था कि उसकी पकड़ में नहीं आ पाता था।

शेर एक बिल्ली से मिला और उसे अपना मित्र बना लिया। शेर ने चूहे को पकड़ने के लिए बिल्ली की सहायता लेने का निश्चय किया। वह बिल्ली को अपनी गुफा में ले आया और उसे खाना खिलाया। एक दिन, शेर शिकार करने के लिए गया था। चूहा भोजन की खोज में अपने बिल से निकला। बिल्ली ने उसे देखा तो उसे तुरंत पकड़कर खा गई।

जब शेर लौटा तो बिल्ली ने उसे बताया कि वह चूहे को मार चुकी है।

अपना काम होने के बाद शेर का व्यवहार बिल्ली के प्रति एकदम बदल गया। अब उसने बिल्ली को खाना खिलाना बंद कर दिया।

बिल्ली को महसूस हुआ कि शेर बहुत स्वार्थी है। उसने शेर की गुफा छोड़ दी और वहाँ से चली गई।

**दादी माँ का लाड़ला

एक बूढ़ी औरत अपने बछड़े के साथ रहती थी। बछड़ा उसे बहुत प्यारा था। उसके प्यार को देखकर सब लोग बछड़े को ‘दादी माँ का लाइला’ कहने लगे थे।

बछड़ा बड़ा होकर शक्तिशाली बैल बन गया। उसने निश्चय किया कि वह अपनी मालकिन के लिए धन कमाएगा।

एक दिन उसकी निगाह एक व्यापारी पर पड़ी। व्यापारी की गाड़ियाँ नदी में फँस गई थी। उसके बैल गाड़ी को खींच नहीं पा रहे थे। व्यापारी ने दादी माँ के लाइले से कहा, “अगर तुम मेरी गाड़ी खींचने में सहायता करोगे, तो मैं तुम्हें सोने के सिक्के दूँगा।”

बैल ने उसकी सारी गाड़ियाँ खींचकर निकाल दीं। व्यापारी ने एक थैली में सोने के दो सिक्के रखकर बैल के गले में लटका दिए। अपनी मेहनत की कमाई लेकर बैल प्रसन्नतापूर्वक घर लौटा और अपनी मालकिन को अपनी कमाई सौंप दी।

** किसान और गाय

धर्मपाल नाम के एक किसान के पास एक गाय थी, जो उसे बहुत सारा दूध देती थी। एक दिन गाय बीमार पड़ गई और उसने दूध देना बंद कर दिया। किसान ने सोचा कि अब तो यह कभी ठीक नहीं होगी। उसने गाय को जंगल में छोड़ दिया।

गाय वहाँ से एक दूसरे गाँव चली गई और वहाँ एक निर्धन किसान माधौ के घर के सामने अचेत होकर गिर पड़ी। माधौ ने उसकी ठीक तरह से देखभाल की और जल्दी ही वह ठीक हो गई। गाय ने फिर से दूध देना शुरू कर दिया और माधौ उस दूध को बेचकर ढेर सारा धन कमाने लगा। जल्दी ही उस गाय की चर्चा सब जगह होने लगी। जब धर्मपाल ने यह सुना तो वह माधौ के पास आया और उससे गाय

वापस करने को कहा। माधौ ने इन्कार कर दिया।

वे दोनों अपना झगड़ा गाँव के मुखिया के पास ले गए। मुखिया ने दोनों किसानों को सामने खड़ा किया और बीच में गाय को छोड़ दिया।

गाय तुरंत जाकर माधौ के पास खड़ी हो गई। मुखिया ने निर्णय सुनाया कि गाय अब माधौ की ही है क्योंकि उसी ने उसकी जरूरत के समय देखभाल की और उसे प्यार-दुलार दिया।

यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है।
दोस्तों यहां दी गई जानकारी किताबें, इंटरनेट और मेरे दृष्टिकोण पर आधारित है किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी हूं । किसी भी प्रकार की त्रुटि की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कमेंट में आप अपना बहुमूल्य विचार साझा कर सकते हैं। जिसके लिए मैं आपका हृदय से आभार रहूंगा, धन्यवाद।

 

Exit mobile version