Khargosh or kachuaa panchtantra Stories : खरगोश और कछुआ की पंचतंत्र की कहानियां
खरगोश और कछुआ
एक घमंडी खरगोश एक कछुए का हमेशा मजाक उड़ाता रहता था। “तुम कितना धीरे चलते हो!” वह कहता। जब कछुआ अपना अपमान नहीं सह पाया तो उसने खरगोश को दौड़ लगाने की चुनौती दे डाली।
खरगोश जोर-जोर से हँसने लगा, “तुम मजाक कर रहे हो ! ठीक है, कल सुबह, हम दोनों पहाड़ी के दूसरी ओर जाएँगे और देखते हैं कौन पहले पहुँचता है।” अगले दिन, सुबह-सुबह दोनों ने अपनी दौड़ शुरू की। खरगोश तेजी से दौड़ा और काफी आगे जाने के बाद उसने पीछे मुड़कर कछुए को देखा। कछुआ बहुत पीछे छूट चुका था। उसने कुछ देर वहीं आराम करने का निश्चय किया। इस बीच, कछुआ धीरे-धीरे लेकिन बिना रुके चलता रहा। जब खरगोश की आँखें खुलीं तो कछुए की दौड़ पूरी होने ही वाली थी। खरगोश ने पूरी जान लगाकर तेज दौड़ने की कोशिश की लेकिन उसके पहुँचने से पहले ही कछुए ने अपनी दौड़ पूरी कर ली और जीत गया ! अब खरगोश को अपनी गलती का अहसास हुआ। धीरे लेकिन लगातार चलने वाले की ही जीत होती है!
**व्यापारी और गधा
एक व्यापारी नमक से भरी बोरियाँ पड़ोस के शहर ले जाया करता था। वह बोरियाँ गधे की पीठ पर लादकर ले जाता था। एक दिन एक तालाब पार करते समय गधे का पैर फिसल गया। व्यापारी ने उसे उठाया। गधे को एकाएक काफी आराम मिला। उसकी पीठ पर लदा ज्यादातर नमक पानी में घुल चुका था और उसका बोझा काफी कम हो गया था। वह बहुत प्रसन्न हुआ।
अब, गधा प्रतिदिन जानबूझकर तालाब में फिसल जाता। कुछ दिनों में व्यापारी गधे की चालाकी समझ गया। उसने गधे को सबक सिखाने का निश्चय किया।
अगले दिन, व्यापारी ने गधे पर नमक की जगह रुई के गट्ठर लाद दिए। जब गधा पानी में गिरा तो रुई भीगकर बहुत भारी हो गई ! गधे से अब बोझ के मारे उठना मुश्किल हो रहा था! “हाँ! अब तुम मेरे साथ कभी चालाकी नहीं करोगे,” व्यापारी हँसा और अपने गधे को हाँकते हुए आगे चल पड़ा।
**नीले सियार की कहानी
एक बार एक सियार एक धोबी के घर में घुस गया और कपड़ों को रंगने के लिए नीले रंग से भरे बड़े हौद में छिप गया। जब वह बाहर निकला तो वह पूरा नीला हो गया था ! जब सियार जंगल वापस आया तो सारे जानवर उसे देखकर डर गए। उन्हें समझ ही नहीं आया कि यह अजीब जानवर कौन-सा है। सियार बोला, “डरने की कोई बात नहीं है। मुझे ईश्वर ने विशेष तौर पर बनाया है। उसने मुझे तुम लोगों का
राजा बनाकर भेजा है।”
जंगल के सभी जानवरों ने उसे अपना राजा मान लिया। एक दिन, जब नीला सियार अपना दरबार लगाए बैठा था, तभी उसे कुछ और सियारों के हुआ-हुआ चिल्लाने की आवाजें सुनाई दीं। अपने साथियों की आवाजें सुनकर वह इतने जोश में आ गया कि वह भी जोर-जोर से हुआ-हुआ चिल्लाने लगा।
सारे जानवर समझ गए कि उनका ये राजा कोई और नहीं, बल्कि सियार ही है। वे सब बहुत नाराज़ हुए। उन सबने मिलकर सियार की अच्छी पिटाई की और उसे वहाँ से भगा दिया।
** भेड़िया और सारस
एक दिन, एक भेड़िए को जंगल में बैल का गोश्त पड़ा मिला। उसने ललचाकर जल्दी से गोश्त खाना शुरू कर दिया। हड्डी का एक टुकड़ा उसके गले में फँस गया। उसे साँस लेने तक में मुश्किल होने लगी।
भेड़िए को याद आया कि पास ही एक सारस रहता है। भेड़िया सारस के पास गया और उससे सहायता माँगने लगा। भेड़िए ने सारस को इनाम देने का भी वादा किया।
सारस को भी उस पर दया आ गई। वह भेड़िए की सहायता करने को तैयार हो गया। भेड़िए ने अपना मुँह पूरा खोल दिया और सारस ने आसानी से उसके गले में फँसी हड्डी अपनी लंबी चोंच से बाहर निकाल दी। इसके बाद सारस ने भेड़िए को उसका वादा याद दिलाते हुए उससे अपना इनाम माँगा।
“कैसा इनाम ?” भेड़िया मुकर गया। “जब तुमने अपनी चोंच मेरे मुँह में डाली थी, तब मैं चाहता तो तुम्हें तभी खा जाता ! तुम्हें तो मेरा आभारी होना चाहिए कि मैंने तुम्हें जिंदा छोड़ दिया।” सारस कोई जवाब देता, उसके
पहले ही स्वार्थी भेड़िया वहाँ से भाग चुका था।
सीख : लोगों को अपनी बातों से मुकरने में वक्त नहीं लगता
**दो मित्र और भालू
एक दिन दो बच्चों, सुजल और पीयूष ने जंगल जाने का निश्चय किया। दोनों मित्र थे और दोनों ने किसी भी संकट के समय एक-दूसरे की सहायता करने का वादा किया। जंगल में अचानक एक भालू उन पर झपट पड़ा। सुजल तो जल्दी से पास के ही एक पेड़ पर चढ़ गया, लेकिन पीयूष को बचने का कोई रास्ता नहीं मिला क्योंकि उसे पेड़ पर चढ़ना नहीं आता था। उसने मर जाने का बहाना किया और वहीं ज़मीन पर लेट गया।
भालू गुर्राते हुए पीयूष के पास आया और उसके कान के पास कुछ फुसफुसाया। पीयूष साँस रोके पड़ा रहा। कुछ देर बाद भालू गुर्राता हुआ वहाँ से चला गया। सुजल पेड़ से उतरकर नीचे आया और पीयूष से पूछने लगा, “भालू तुमसे क्या कह रहा था ?”
“भालू ने मुझसे कहा कि ऐसे स्वार्थी मित्रों से दूर रहना चाहिए, जो संकट के समय तुम्हें अकेला छोड़कर भाग जाते हों,” पीयूष ने जवाब दिया।
** सच्चा मित्र
बहुत समय पहले एक पेड़ पर तोतों का एक जोड़ा रहता था। उसी पेड़ पर एक बिल में एक बूढ़ा साँप रहता था। साँप बहुत कमजोर हो चुका था। वह अपने लिए शिकार की तलाश करने तक नहीं जा पाता था। तोते उसके बिल के पास कुछ खाना रख देते थे।
साँप उन तोतों का बहुत आभार जताया करता था। एक दिन, एक गिद्ध उन तोतों का शिकार करने के लिए उस पेड़ पर मँडराने लगा। तभी एक बहेलिया वहाँ आया। उसने तीर से एक तोते पर निशाना लगाया।
जब साँप को यह पता चला कि उसके मित्र संकट में हैं, तो उसने बहेलिए के पैर में काट लिया। साँप के काटने से बहेलिए का हाथ हिल गया और उसका निशाना चूक गया। बहेलिए का तीर सीधे मँडरा रहे गिद्ध को जा लगा।
साँप ने अपने मित्रों की जान बचाकर साबित कर दिया कि वह सच्चा मित्र है।
**चालाक लोमड़ी
एक कौआ एक पेड़ की डाल पर रोटी का टुकड़ा अपनी चोंच में दबाए बैठा था। एक लोमड़ी वहाँ आई। कौए की रोटी छीनने के लिए उसने एक चाल चली।
उसने कौए का अभिवादन किया, लेकिन कौए ने उसका कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि अगर वह मुँह खोलता तो रोटी का टुकड़ा नीचे गिर जाता।
तब लोमड़ी बोली, “तुम बहुत सुंदर लग रहे हो। तुम्हें तो सारे पक्षियों का राजा बना देना चाहिए। मुझे अपनी मधुर आवाज़ में एक गाना सुना दो।”
अपनी चापलूसी से प्रसन्न होकर कौआ स्वयं को रोक नहीं पाया और उसने जवाब दिया, “धन्यवाद!” लेकिन जैसे ही उसने मुँह खोला, उसकी चोंच में दबा रोटी का टुकड़ा नीचे गिर पड़ा। चालाक लोमड़ी ने तुरंत वह टुकड़ा उठा लिया और भाग गई।
**गधे ने गाया गाना
एक बार की बात है, एक बूढ़ा और कमजोर गधा था। एक बार रात में गधे को एक सियार मिला। दोनों मित्र बन गए और साथ-साथ खाने की तलाश में जाने लगे।
अगली रात को वे दोनों ककड़ी के एक खेत में गए। वहाँ दोनों ने भरपेट ककड़ियाँ खाईं। अब वे दोनों रोज रात को उस खेत में जाने लगे।
एक रात, गधे ने सियार से कहा, “मेरा गाना गाने का मन कर रहा है।” सियार ने कहा, “अरे भैया, ऐसा मत करो। इस खेत का मालिक तुम्हारी तेज आवाज़ ज़रूर सुन लेगा और लाठी लेकर यहाँ आ धमकेगा। यह तो जानते ही हो न, कि हम यहाँ चोरी से आए हैं।”
उधर, गधा अपने मित्र की बात सुनने को तैयार नहीं था। सियार ने ख़तरा समझकर वहाँ से भागने में ही भलाई समझी। गधे की कर्कश आवाज़ सुनकर किसान वहाँ आ पहुँचा और अपने खेत में गधे को घुसा देखकर उसकी अच्छी पिटाई की ।
**बुरी संगत
एक किसान कौओं से बहुत परेशान था। दुष्ट कौए आते और रोज उसकी फसल खा जाते। उन कौओं को भगाने के लिए किसान ने खेत में कुछ बिजूका भी लगाए लेकिन कौए इतने चालाक थे कि वे बिजूकों को भी नोंच-फाड़ देते थे।
एक दिन, किसान ने अपने खेत में जाल फैला दिया। जाल के ऊपर उसने अनाज फैला दिया। कौए जाल में फँस गए। जाल में फँसे कौओं ने किसान से दया की भीख माँगी लेकिन किसान बोला, “मैं तुम लोगों को जिंदा नहीं छोडूंगा।” अचानक किसान को एक दर्दभरी आवाज़ सुनाई दी। उसने ध्यान से जाल में देखा। उसे दिखाई दिया कि कौओं के साथ एक कबूतर भी फँसा है।
किसान कबूतर से बोला, “तुम इन दुष्ट कौओं के साथ क्या कर रहे थे ? अब तुम भी अपनी इसी बुरी संगत की वजह से अपनी जान गँवा बैठोगे।” और फिर किसान ने उन कौओं और कबूतर को अपने शिकारी कुत्तों को खिला दिया। किसी ने सच ही कहा है, बुरी संगत हमेशा हानिकारक होती है।
**कुत्ता चला विदेश
एक नगर में चित्रांगन नामक एक होशियार कुत्ता रहता था। एक साल उस नगर में भयानक अकाल पड़ा। चित्रांगन को खाने के लाले पड़ गए। परेशान होकर वह कहीं दूर के नगर में
चला गया। नई जगह पर खाने-पीने की कोई कमी नहीं थी। वह एक घर के पिछवाड़े में रहता और वहाँ मनपसंद खाना खाता।
एक दिन, कुछ वहीं के कुत्तों ने उसे देख लिया। उसे देखते ही वे समझ गए कि यह कुत्ता तो बाहर से आया है। उन कुत्तों ने उस पर हमला कर दिया। सारे कुत्ते उस पर भौंकते हुए टूट पड़े और उसे जगह-जगह से बुरी तरह घायल कर दिया। आखिरकार, किसी तरह वह उन कुत्तों के
चंगुल से छूट पाया। अब वह सोचने लगा, “यह जगह छोड़ देने में ही भलाई है। मेरे नगर में भले ही अकाल पड़ा हो, लेकिन कम से कम वहाँ मेरे साथी तो हैं।”
यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है।
दोस्तों यहां दी गई जानकारी किताबें, इंटरनेट और मेरे दृष्टिकोण पर आधारित है किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी हूं । किसी भी प्रकार की त्रुटि की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कमेंट में आप अपना बहुमूल्य विचार साझा कर सकते हैं। जिसके लिए मैं आपका हृदय से आभार रहूंगा, धन्यवाद।