Less knowledge is required to live in life because knowledge is endless and infinite : जीवन में जीने के लिए कम ज्ञान की आवश्यकता होती है क्योंकि ज्ञान अंतहीन और अनंत है।
आज मनुष्य के पास ज्यादातर ज्ञान दूसरों को निरूत्तर करने के लिए होता है अपितु स्वयं के जीवन के प्रश्नों का उत्तर ढूंढने के लिए नहीं होता । यदि ऐसा होता तो आज विश्व का अधिकांश मनुष्य परेशान ना होता। भारतीय समाज में यह समस्या बहुत ही गहरी है कोई किसी की भावनाओं को समझना ही नहीं चाहता बल्कि अपने तर्क-कुतर्क भरे ज्ञान से एक-दूसरे को निरुत्तर करने में लगा रहता है।
अक्सर आज युवाओं को अधिक से अधिक ज्ञान के अर्जन के लिए प्रेरित किया जाता है फिर भी हम सभी अपने जीवन में कुछ ऐसा नहीं कर पाते जैसा हम अपने आप से उम्मीद करते हैं। वर्तमान में डिग्री की महत्ता बढ़ती जा रही है फिर भी लोग अपने ज्ञान से ही अधिक परेशान है।
भगवान श्री कृष्ण भी महाभारत में अर्जुन को भगवद् गीता में तो यही समझ रहे हैं तुम्हारा युद्ध करना ही श्रेष्ठ है,क्षत्रिय का स्वधर्म है और शास्त्रों की इधर-उधर की बातों से स्वयं को परेशान मत करो,युद्ध करो ।अपनी मन को एक चित कर युद्ध में केंद्रित करो यही तुम्हारा धर्म है ,मर्म है और कर्म है। अब अर्जुन को सत्य समझाने के लिए श्री कृष्ण को एक आवश्यक ज्ञान अर्जुन को देना ही पड़ा तब जाकर अर्जुन युद्ध के लिए तैयार हो सका।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।
अर्थात – तेरा कर्ममें ही अधिकार है ज्ञाननिष्ठामें नहीं। वहाँ ( कर्ममार्गमें ) कर्म करते हुए तेरा फलमें कभी अधिकार न हो अर्थात् तुझे किसी भी अवस्थामें कर्मफलकी इच्छा नहीं होनी चाहिये।
इसी एक श्लोक को पूर्ण अर्थ समझ कर इंसान अपने जीवन में कुछ ऐसा कर सकता है जिसकी उम्मीद किसी ने नहीं की हो। किसी इंसान के जीवन को बदलने के लिए यह एक ही श्लोक पर्याप्त है।
इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद् गुह्यतरम् मया।
विमृश्षयैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु।।18/63।।
अर्थात् – इस प्रकार यह गोपनीय से भी अति गोपनीय ज्ञान मैंने तुझसे कह दिया । अब तो इस रहस्य युक्त ज्ञान को पूर्णतया भली भांति विचार कर जैसा चाहता है वैसा ही कर।
अंत में श्री कृष्णा भी यही कह रहे हैं सभी ज्ञान जो आवश्यक था वह मैंने तुम्हें दे दिया फिर भी भली भांति बातें विचार करके वैसा ही कर जैसी तेरी बुद्धि तुझे करने को कह रही है।
भारतीय शास्त्र व दर्शन भी सीमित ज्ञान के पक्षधर हैं और कई सारे संस्कृत के श्लोक इस बात पर बल देते हैं। फिर ना जाने क्यों ज्ञान के पीछे लोग दौड़ रहे हैं और अपने जीवन के अनमोल समय को खर्च कर रहे हैं।
## अनन्तशास्त्रं बहु वेदितव्यम् अल्पश्च कालो बहवश्च विघ्नाः ।
यत् सारभूतं तदुपासितव्यं हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमिश्रम॥
अर्थात्- जानने योग्य वाड्मय में (शास्त्र या पुस्तक) बहुत अधिक है और समय बहुत अल्प है तथा विध्न अनेक है। इसलिए जो अपने लिए महत्वपूर्ण हो , उसी साहित्य का अध्ययन करना चाहिए जैसे पानी में मिले दूध में से हंस दूध को ग्रहण कर लेता है।
## अनेकशास्त्रं बहु वेदितव्यम् अल्पश्च कालो बहवश्च विघ्नः।
यत् सर्वभूतं तदुपासितव्यं हंसो यथा क्षीर्मिवम्बमध्यात् ॥
अर्थात् -पढ़ने के लिए शास्त्र बहुत और ज्ञान अपरिमित है अपने पास समय की कमी है और बाधाऐं बहुत है जैसे हंस पानी में से दूध निकाल लेता है उसी तरह शास्त्र का सार समझ लेना चाहिए।
## ग्रन्थानम्यस्य मेधावी ज्ञान विज्ञानतत्पर: ।
पलालमिव धान्यार्थी त्यजेत सर्वमशेषतः ।।
अर्थात्- बुद्धिमान मनुष्य जिसे ज्ञान प्राप्ति करने की तीव्र इच्छा है , ग्रन्थों में से जो महत्वपूर्ण विषय है वह उसे पढ़कर ग्रंथ का सार जान लेता है तथा उस ग्रंथ की अनावश्यक बातों (जो उसके काम की नहीं )को छोड़ देता है , उसी तरह जैसे किसान केवल धान उठाता है।
## अणुम्यश्च महद्म्यश्च शास्त्रेम्य: कुशलोनर:।
सर्वत: सारमादद्यात पुष्पेम्य इव षट्पद:।।
भवरा जैसे छोटे बड़े सभी फूलों में से केवल मधु एकत्र करता है इस तरह चतुर मनुष्य को शास्त्रों में से केवल उनका सार लेना चाहिए।
## शास्त्राण्यधीत्यापि भवन्ति मूर्खाः, यस्तु क्रियावान पुरुषः स विद्वान्।
सुचिन्तितं चौषधमातुराणां, न नाममात्रेण करोत्यरोगं।।”
अर्थात – “शास्त्रों का अध्ययन कर भी लोग मूर्ख रह जाते हैं।
परंतु जो कृतीशील है (शास्त्रों का अनुसरण करता है ) वही सही अर्थ में विद्वान है। जैसे किसी रोगी के प्रति केवल अच्छी भावना से निश्चित किया गया औषध रोग को ठीक नहीं कर सकता वह औषध नियमानुसार लेने पर ही योगी ठीक हो सकता है।
[अर्थात – “शास्त्रों का अध्ययन कर भी लोग मूर्ख रह जाते हैं। विद्वान वही है जो व्यवहार कुशल है। जैसे सही औषधि के सेवन से रोगी ठीक होता है न कि नाम लेने से।”]
## परोपदेशे पांडित्यं सर्वेषां सुकरं नृणाम्।
धर्मे स्वीयमनुष्ठानं कस्यचित् सुमहात्मन:
अर्थात् – दूसरों को उपदेश देकर अपना पांडित्य दिखाना बहुत सरल है। परंतु केवल महान व्यक्ति ही उस तरह से (धर्मानुसार)अपना बर्ताव रख सकता है।
## उष्ट्राणां च विवाहेषु गीतं गायन्ति गर्दभा:
परस्परं प्रशंसन्ति अहो रुपमहो ध्वनि:
अर्थात् – ऊंटो के विवाह मे गधे गाना गा रहे हैं। दोनो एक दूसरे की प्रशंसा कर रहे हैं वाह क्या रूप है (ऊंट का), वाह क्या आवाज है (गधे की)। वास्तव में देखा जाए तो ऊंटों में सौंदर्य के कोई लक्षण नहीं होते, न कि गधों मे अच्छे स्वर के । परन्तु कुछ लोगोंने कभी उत्तम क्या है यही देखा नहीं होता । ऐसे लोग इस तरह से जो प्रशंसा करने योग्य नहीं है, उसकी प्रशंसा करते हैं ।
कबीर दास ने भी कहा है-
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया ना कोय ढाई आखर प्रेम का पड़े तो पंडित होय।।
उपरोक्त बातों से तय है की जो लोग अधिक ज्ञान के पीछे भागते हैं वह जीवन में अधिक सफल नहीं हो पाते क्योंकि उसे उपलब्ध ज्ञान ही उसी को परेशान करता रहता है ठीक उसी तरह जिस प्रकार से अर्जुन को परेशान उसके ज्ञान ने किया था ।
आज नित्य विज्ञान नई-नई चीज खोज रहा है और नए ज्ञान का सृजन कर रहा है तो सभी ज्ञान का अर्जन कर पाना असंभव सा है और अभी तो प्रकृति और ब्रह्मांड के कई सारे रहस्य खुलना बाकी हैं अतः ज्ञान के अधिकता पर नहीं सटीकता पर बल देना चाहिए । आपके पास एक लक्ष्य होना चाहिए अपने जीवन में कुछ नया कर दिखाने के लिए और उसी के संदर्भ में आप ज्ञान का अर्जन करें जिससे आप एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर पाएंगे।
मैं अपने पापा के जीवन के बारे में कुछ बातें यहां लिखना चाहूंगा क्योंकि मेरे पापा भी ज्ञान की अधिकता के शिकार हैं। इन्होंने आर्थिक पारिवारिक व सामाजिक समस्या का सामना करते हुए ज्ञान के अर्जन में अपने जीवन का मूल्यवान समय को खर्च किया फिर भी वह सफलता के शिखर पर नहीं पहुंच पाए जहां उन्हें होना चाहिए था ।पापा ने स्वाध्याय के जरिए तमिल, बांग्ला, उर्दू ,अंग्रेजी ,रशियन इत्यादि भाषा को सीख लिया ।
भारतीय धार्मिक शास्त्रों और विदेशी धार्मिक शास्त्रों यथा कुरान बाइबल जैसे पुस्तकों का भी अध्ययन किया फिर भी वह उस मुकाम पर नहीं जहां आज उन्हें होना चाहिए था। हमारे समाज में ऐसे कई सारे लोग मिल जाएंगे जिनके पास ज्ञान की तो कमी नहीं है अगर कमी है तो उस ज्ञान के मूलभूत आधार को समझने का और उसे जीवन में उतारने का और अपने सपने के लिए मार्ग पर निरंतर चलते रहने का।
किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी हूं यहां किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए आप मेरा ध्यान आकर्षित कर सकते हैं। कमेंट में आप अपना वक्तव्य जरूर डालें इसके लिए मैं आपका हृदय से आभारी रहूंगा।