Pissu or bechara khatmal panchtantra Stories : पिस्सू और बेचारा खटमल की पंचतंत्र की कहानियां

**पिस्सू और बेचारा खटमल

एक खटमल एक राजा के पलंग में रहता था। एक पिस्सू शयनकक्ष में आया और खटमल से बोला, “मैंने कभी किसी राजा का खून नहीं पिया। आज तुम्हारे साथ मैं भी राजा का खून पिऊँगा।”
खटमल ने जवाब दिया, “तुम प्रतीक्षा करना। मेरा पेट भर जाने के बाद ही तुम्हारी बारी आएगी। तब तुम अपना पेट भर लेना।”

पिस्सू सहमत हो गया। इस बीच, राजा शयनकक्ष में आ गया। बेसब्र पिस्सू अपने पर नियंत्रण नहीं कर पाया। राजा के सोने से पहले ही उसने उसका खून चूसना शुरू कर दिया। पिस्सू के काटने से राजा पलंग पर उठकर बैठ गया। उसने अपने सेवकों को बुलाकर पलंग की अच्छी तरह से जाँच-पड़ताल करने को कहा। राजा के सेवकों ने पलंग को बहुत ध्यान से देखा। पिस्सू तो धीरे से पलंग के अंधेरे कोने में खिसककर छिप गया लेकिन खटमल उन्हें दिख गया। उन्होंने खटमल को मार डाला।

** दुष्ट बिचौलिया

एक गौरैया ने एक पेड़ पर खाली छेद में अपना घर बनाया। एक दिन वह भोजन की तलाश में निकली और फिर कई दिन तक नहीं लौटी।

इस बीच एक खरगोश वहाँ आया और उसका घर खाली देखकर उसमें रहने लगा। काफी दिनों बाद गौरैया लौटी तो खरगोश ने वह घर खाली करने से इन्कार कर दिया। गौरैया बोली, “चलो किसी से अपना फैसला करवाते हैं। वह जैसा कहेगा, हम दोनों वैसा ही करेंगे।”

इस बीच, एक दुष्ट बिल्ली को उनके झगड़े के बारे में पता चल गया। वह उन दोनों के पास आ गई। दोनों ने उन्हें अपने झगड़े के बारे में बताया। बिल्ली बड़ी मीठी आवाज़ में बोली, “मैं बहुत बूढ़ी हो गई हूँ और मुझे ठीक से सुनाई नहीं देता। पास आकर अपनी बात समझाओ।” जब बेचारी गौरैया और खरगोश उसके पास आ गए, तो बिल्ली ने झपटकर दोनों को दबोच लिया और उन्हें मारकर खा गई !

अगर तुम लोग भी लड़ोगे तो तुम्हारी शक्ति कम हो जाएगी और दूसरे इसका लाभ उठा ले जाएँगे।

**मूर्ख बिल्लियाँ

एक बार एक बिल्ली को सड़क पर रोटी का टुकड़ा पड़ा मिला। तभी एक और बिल्ली की निगाह उस टुकड़े पर पड़ी। दोनों बिल्लियाँ आपस में झगड़ने लगीं।

कुछ देर बाद, पहली बिल्ली ने सुझाव दिया कि रोटी के टुकड़े को दो हिस्सों में बाँट लेते हैं। तभी एक बंदर वहाँ आ गया। बिल्लियों ने उस बंदर से कहा कि वह रोटी के उस टुकड़े को दो बराबर भागों में बाँट दे।

बंदर बहुत चालाक था। उसने रोटी के दो टुकड़े किए और दोनों के आकार की जाँच करने लगा। एक हिस्सा थोड़ा बड़ा लगा तो उसने उसका एक टुकड़ा खा लिया। अब उसने देखा कि दूसरा हिस्सा कुछ बड़ा रह गया है। उसने दूसरे हिस्से का एक टुकड़ा खा लिया। इसी तरह करते-करते वह दोनों हिस्से खा गया और बिल्लियों को कुछ भी नहीं मिला।

** लालची सियार

एक जंगल में एक शिकारी ने एक मोटे-तगड़े सुअर पर नुकीले तीर से निशाना लगाया। सुअर ने घायल होने के बावजूद शिकारी पर पलटकर हमला किया और उसे मार डाला। इसके बाद सुअर भी अपने शरीर के घाव की वजह से मर गया।

कुछ देर बाद, एक भूखा सियार वहाँ आ पहुँचा। उसे शिकारी और सुअर के रूप में दो-दो शिकार पड़े मिले। वह स्वयं से कहने लगा, “आज ईश्वर ने मेरे ऊपर बड़ी कृपा की है। चलो, पहले इस धनुष की डोरी से ही खाने की शुरुआत की जाए।” सियार शिकारी की लाश के पास गया और धनुष की डोरी को कुतरने लगा। जैसे ही धनुष की डोरी टूटी, वैसे ही उसमें लगा तीर पूरे जोर से निकल कर सीधे सियार के शरीर में घुस गया और वह वहीं पर मर गया।

उसे खाना शुरू करने से पहले सोचना चाहिए था। ऐसा न करके वह लालच में आकर बिना सोचे-समझे टूट पड़ा और अपनी जान गँवा बैठा।

**तीन मछलियों की कहानी

एक तालाब में तीन मछलियाँ रहती थीं। वे आपस में सहेलियाँ थीं। एक दिन कुछ मछुआरे उस तालाब के पास से निकले और कहने लगे, “यह तालाब तो मछलियों से भरा पड़ा है। कल सुबह आकर यहीं पर मछलियाँ पकड़ेंगे।”

मछुआरों की बातें सुनकर उन तीन मछलियों में से सबसे बुद्धिमान मछली बोली, “हमें आज रात ही इस तालाब को छोड़ देना चाहिए।”

दूसरी मछली भी सहमत हो गई, लेकिन तीसरी मछली जोर से हँसते हुए बोली, “हम यह तालाब क्यों छोड़ें ? यह तो हमारा बहुत पुराना घर है। हमारे पूर्वज भी यहीं रहते आए हैं। रही बात जान बचाने की तो वो तो हम दूसरी जगह जाकर भी नहीं बचा सकते।”

दोनों मछलियों ने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी। दोनों मछलियाँ उसे छोड़कर चली गईं। अगले दिन मछुआरों ने बहुत सारी मछलियाँ पकड़ीं। वह तीसरी मछली भी पकड़ी गई।

 

** बंदर की जिज्ञासा और कील

एक व्यापारी ने एक मंदिर बनवाना शुरू किया और मजदूरों को काम पर लगा दिया। एक दिन, जब मजदूर दोपहर में खाना खा रहे थे, तभी बंदरों का एक झुंड वहाँ आ गया।

बंदरों को जो सामान हाथ लगता, उसी से वे खेलने लगते। एक बंदर को लकड़ी के एक मोटे लट्टे में एक बड़ी-सी कील लगी दिखाई दी। कील की वजह से लट्टे में बड़ी दरार-सी बन गई थी। बंदर के मन में आया कि वह देखे कि आख़िर वह है क्या। जिज्ञासा से भरा बंदर जानना चाहता था कि वह कील क्या चीज है। बंदर ने उस कील को हिलाना शुरू कर दिया।

वह पूरी ताकत से कील को हिलाने और बाहर निकालने की कोशिश करता रहा। आखिरकार, कील तो बाहर निकल आई लेकिन लट्टे की उस दरार में बंदर का पैर फँस गया। कील निकल जाने की वजह से वह दरार एकदम बंद हो गई। बंदर उसी में फँसा रह गया और पकड़ा गया। मजदूरों ने उसकी अच्छी पिटाई की।

जिस बात से हमारा कोई लेना-देना न हो, उसमें अपनी टाँग नहीं अड़ानी चाहिए।

**घमंडी कौए

एक नन्हीं मैना अपने घोंसले में लौटते समय अंधेरा हो जाने के कारण रास्ता भटक गई। वह एक पेड़ पर बैठ गई। उस पेड़ पर बहुत सारे कौए बैठे थे। वे सब चिल्लाने लगे, “हमारे पेड़ से भागो !”

मैना ने उनसे विनती की, “बारिश होने वाली है। मुझे थोड़ी देर यहीं रुक जाने दो।” लेकिन कौओं ने उसकी एक न सुनी।

आख़िरकार, मैना उड़कर दूसरे पेड़ पर चली गई। वहाँ पर उसे एक खाली गड्डा मिल गया, जिसमें वह आराम से बैठ गई। कुछ ही देर बाद भारी बारिश होने लगी और बड़े-बड़े ओले गिरने लगे। कई कौए घायल हो गए और कई तो मर भी गए। जब बारिश थमी तो मैना बाहर निकली और अपने घर की तरफ उड़ चली। एक कौए ने उससे पूछा, “अरे, तुम्हें चोट नहीं लगी ?”

“दूसरों पर दया करने वालों की ईश्वर सहायता करता है और तुम्हारे जैसे घमंडियों को कष्ट सहने के लिए छोड़ देता है,” मैना ने जवाब दिया

**नेवला और ब्राह्मण का बेटा

एक ब्राह्मण की पत्नी ने एक बेटे को जन्म दिया। उसी दिन एक मादा नेवले ने एक बच्चे को जन्म दिया और मर गई। ब्राह्मण की पत्नी ने नेवले के बच्चे को भी अपने बेटे की तरह पाला-पोसा।

एक दिन ब्राह्मणी पानी भरने के लिए कुएँ पर गई। उस समय उसका पति भी घर पर नहीं था।

थोड़ी ही देर में, एक साँप वहाँ आ गया और रेंगता हुआ ब्राह्मण के बच्चे की ओर बढ़ा। नेवला तुरंत उस पर झपट पड़ा और उसने साँप को मार डाला। अपनी बहादुरी बताने के लिए नेवला घर के बाहर खड़ा हो गया। ब्राह्मणी जब लौटी तो उसने देखा कि नेवले का मुँह खून से सना हुआ है। उसने सोचा कि नेवले ने उसके बेटे को मार डाला है। उसने पानी से भरा भारी घड़ा गुस्से में आकर नेवले के ऊपर पटक दिया और उसे मार डाला।

जब वह घर के अंदर गई तो उसने देखा कि उसका बच्चा तो सुरक्षित है, लेकिन उसके पास ही एक मरे हुए साँप के टुकड़े पड़े हैं। ब्राह्मण की पत्नी को बहुत दुख हुआ कि उसने इतने स्वामिभक्त नेवले को मार डाला।


**गधे के पास दिमाग नहीं होता

जंगल का राजा शेर बूढ़ा हो चुका था। कमजोर हो जाने के कारण वह शिकार तक नहीं

कर पाता था। उसने लोमड़ी को बुलवाया और उससे कहा, “मैं तुम्हें अपना मंत्री बनाता हूँ। तुम जंगल के मामलों में मुझे सलाह दिया करो और प्रतिदिन मेरे लिए एक जानवर भी खाने के लिए लाया करो।” लोमड़ी बाहर चली गई। रास्ते में उसे एक गधा मिला। वह गधे से बोली, “तुम बहुत भाग्यशाली हो। अपने राजा ने तुम्हें प्रधानमंत्री बनाने का निश्चय किया है।”

गधा बोला, “मुझे तो शेर से डर लगता है। वह मुझे मार डालेगा और खा जाएगा। और वैसे भी मैं मंत्री बनने योग्य नहीं हूँ!” चालाक लोमड़ी हँसने लगी और बोली, “अरे, तुम्हें अपने गुणों का पता नहीं है! तुम्हारे अंदर बहुत सारे अच्छे-अच्छे गुण हैं। हमारा राजा तुमसे मिलने के लिए बेचैन है। उसने तुम्हें इसलिए चुना है क्योंकि तुम बुद्धिमान, विनम्र और परिश्रमी हो। अब मेरे साथ चलो और राजा से मिल लो। वह तुमसे मिलकर बहुत प्रसन्न होगा।”

गधा लोमड़ी की बातों में आ गया और लोमड़ी के साथ चलने को तैयार हो गया। जैसे ही वे लोग गुफा में घुसे, शेर गधे पर झपट  पड़ा और उसे तुरंत मार डाला।

शेर ने चालाक लोमड़ी को धन्यवाद दिया और प्रसन्नतापूर्वक खाना खाने को तैयार हो गया। जैसे ही शेर भोजन करने को हुआ, वैसे ही लोमड़ी बोल पड़ी, “महाराज, मैं जानती हूँ कि आप बहुत भूखे हैं और आपके भोजन का समय भी हो चुका है, लेकिन राजा को तो नहा-धोकर भोजन करना चाहिए।” शेर को यह बात पसंद आई। वह बोला, “तुम सही कहती हो। मैं अभी जाकर नहाके आता हूँ। तुम मेरे भोजन पर निगाह रखना।” लोमड़ी चुपचाप बैठी शेर के भोजन को देखने लगी। उसे भी बहुत भूख लगी थी। उसने अपने आपसे कहा, “सारी मेहनत तो मैंने की है। माँस के सबसे अच्छे हिस्से पर तो मेरा ही हक बनता है।” ऐसा सोचकर, उसने गधे का सिर खोल डाला और उसका दिमाग खा गई। जब शेर लौटा तो उसकी निगाह गधे पर पड़ी।उसे लगा कि गधे का कुछ हिस्सा कम है। उसने ध्यान से देखा तो उसे समझ में आ गया कि गधे का सिर खुला हुआ है। उसने लोमड़ी से पूछा, “यहाँ कौन आया था? इस गधे के सिर को क्या हो गया?”
लोमड़ी एकदम से भोली बन गई। उसने बातें बनाते हुए शेर से कहा, “महाराज, जब आपने गधे को मारा था, तो उसके सिर पर आपने जोर से पंजा मारा था। इसी से उसका सिर खुल गया था।” शेर उसके जवाब से संतुष्ट हो गया और भोजन करने बैठ गया। अचानक, वह फिर से चिल्ला पड़ा, “अरे, इस गधे का दिमाग कहाँ गया? मैं तो सबसे पहले इसका दिमाग ही खाना चाहता हूँ!” लोमड़ी मुस्कराते हुए बोली, “महाराज, गधों के पास दिमाग होता ही नहीं है। अगर इसके पास दिमाग होता तो वह आपका शिकार बनने के लिए आता ही नहीं!”

यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है।
दोस्तों यहां दी गई जानकारी किताबें, इंटरनेट और मेरे दृष्टिकोण पर आधारित है किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी हूं । किसी भी प्रकार की त्रुटि की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कमेंट में आप अपना बहुमूल्य विचार साझा कर सकते हैं। जिसके लिए मैं आपका हृदय से आभार रहूंगा, धन्यवाद।

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