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Vidyarthi or sher panchtantra Stories : विद्यार्थी और शेर की पंचतंत्र की कहानियां

Vidyarthi or sher panchtantra Stories : विद्यार्थी और शेर की पंचतंत्र की कहानियां

 

**विद्यार्थी और शेर

एक छोटे से नगर में चार ब्राह्मण विद्यार्थी रहते थे। वे एक-दूसरे के बहुत अच्छे मित्र भी थे। उनमें से लीज पढ़ाई-लिखाई में बहुत होशियार थे और बहुल बतुर माने जाते थे। चौथा विद्यार्थी पढ़ाई में बहुत तेज नहीं था लेकिन उसे दुनियादारी की समझ काफी थी।

एक दिन एक विद्यार्थी बोला, “अगर हम लोग राजाओं के दरवारों में जाएँ तो अपनी बुद्धि के बल पर बहुत नाम और दाम कमा सकते हैं।”

सारे विद्यार्थी तुरंत मान गए। वे यात्रा पर निकल पड़े। रास्ते में उन्हें शेर की खाल और हड्डियाँ पड़ी मिली।

पहला विद्यार्थी जोश में आकर बोला, “हमें अपने ज्ञान की परीक्षा करनी चाहिए। चलो, इस शेर को फिर से जीवित करते हैं। मैं इसके कंकाल को सही तरह से व्यवस्थित कर सकता हूँ।”

“मैं कंकाल में माँस और खून भर सकता हूँ,” दूसरे विद्यार्थी ने भी शेखी बघारी।

“मैं फिर इसके शरीर में जान डाल सकता हूँ। यह फिर से जीवित जानवर बन जाएगा।” तीसरा विद्यार्थी बोल पड़ा।

चौथे विद्यार्थी ने कुछ नहीं कहा और तीनों की बातें सुनता रहा।

इसके बाद उसने अपना सिर हिलाया और बोला, “ठीक है, तुम लोगों को जो अच्छा लगे, वैसा करो। लेकिन पहले मुझे किसी पेड़ पर चढ़ जाने दो। तुम लोग बहुत होशियार हो। मुझे तुम लोगों के ज्ञान और बुद्धि पूरा भरोसा है। तुम

लोग शेर को अवश्य जीवित कर लोगे और जल्द ही यह मरा हुआ शेर जीवित होकर दहाड़ मारने लगेगा। हालाँकि मुझे यह विश्वास नहीं है कि तुम लोग इस शेर का स्वभाव भी बदल पाओगे। शेर कभी घास नहीं खा सकता, जैसे मेमना कभी माँस नहीं खा सकता।”

उसके साथी उसकी बात सुनकर हँस पड़े। “तुम डरपोक हो। तुम्हें अपनी जान गंवाने का डर है। शर्म करो! तुम्हें हमारे ज्ञान पर भरोसा है लेकिन तुम्हें यह नहीं पता कि हम लोग जिस जानवर को जीवित करेंगे, वह पूरी तरह हमारे अनुसार ही कार्य करेगा। हम जिस जानवर को जीवनदान देंगे, वह भला हमारे ऊपर क्यों हमला करेगा? खैर, तुम चाहते हो तो छिप जाओ और हमारा कमाल देखो!”

चौवा विद्यार्थी दौड़कर एक पेड़ पर चढ़ गया। उसके सारे मित्र उसे देखकर फिर से हँस पड़े। जब तीसरे विद्यार्थी ने शेर के शरीर में जान डाली तो शेर दहाड़ मारकर उठ बैठा। उठते ही उसने तीनों विद्यार्थियों पर झपट्टा मारा और उन्हें मारकर खा गया। चौये विद्यार्थी ने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि उसने उसे दुनियादारी की इतनी समझ दी कि उसने ईश्वर और उसके बनाए प्राणियों के काम में दखल नहीं दिया।

**लालची कुत्ता

एक कुत्ता इधर-उधर घूम रहा था। तभी उसे हड्डी का एक टुकड़ा पड़ा मिला।

उसने हड्डी का टुकड़ा उठा लिया और इधर-उधर देखने लगा। जब उसे कोई नहीं दिखा, तो वह टुकड़ा लेकर भाग निकला।

अब वह किसी एकांत और शांत स्थान की खोज करने लगा, जहाँ वह बैठकर आराम से हड्डी चबा सके। वह एक नदी किनारे पहुँचा और उसके ऊपर बने लकड़ी के पुल से नदी पार करने लगा।

जब वह पुल पार कर रहा था तभी उसकी निगाह नदी के पानी पर पड़ी। उसे पानी में अपनी ही छवि दिखाई दी। उसने अपनी ही छवि देखकर समझा कि वह कोई और कुत्ता है, जो हड्डी का टुकड़ा भी मुँह में दबाए है।

उसके मन में लालच आ गया। उसने दूसरे कुत्ते की हड्डी छीनने का निश्चय किया।

दूसरे कुत्ते को डराने के लिए वह जोर से भौंका। भौंकने के लिए उसने जैसे ही मुँह खोला, उसकी हड्डी पानी में गिर गई।

उसने हड्डी दोबारा उठाने की बहुत कोशिश की

लेकिन हड्डी तो पानी में नीचे चली गई थी।

इस प्रकार, कुत्ते ने दूसरे कुत्ते की हड्डी पाने के चक्कर में अपनी हड्डी भी गंवा दी।

**जादुई मुर्गी

एक दिन एक निर्धन व्यक्ति एक किसान के पास गया और एक मुर्गी के बदले उससे एक बोरी चावल ले आया।

किसान की पत्नी को जब पता चला कि उसके पति ने एक साधारण मुर्गी के बदले बोरी भर चावल दे दिए तो वह बहुत नाराज हुई।

अगले दिन, सुबह किसान की पत्नी मुर्गी के पास गई तो उसे एक सोने का अंडा मिला।

जादुई मुर्गी हर दिन सोने का एक अंडा देने लगी। कई सप्ताह तक ऐसा चलता रहा। जल्द ही वह किसान गाँव में सबसे धनी हो गया। किसान की लालची पत्नी इससे संतुष्ट नहीं थी। एक दिन जब किसान घर पर नहीं

था, तो वह एक बड़ा चाकू ले आई और मुर्गी का पेट काट डाला। वह सोच रही थी कि मुर्गी के पेट से एक साथ सारे सोने के अंडे मिल जाएँगे। जब उसे एक भी अंडा नहीं मिला तो उसे बहुत निराशा हुई। अब उसे हर दिन जो अंडा मिलता था, वह उससे भी हाथ धो बैठी।

सीख- मूर्खता और लालच हमेशा परेशानी का कारण बनती है।

**जादुई मुर्गी

एक दिन एक निर्धन व्यक्ति एक किसान के पास गया और एक मुर्गी के बदले उससे एक बोरी चावल ले आया।

किसान की पत्नी को जब पता चला कि उसके पति ने एक साधारण मुर्गी के बदले बोरी भर चावल दे दिए तो वह बहुत नाराज हुई।

अगले दिन, सुबह किसान की पत्नी मुर्गी के पास गई तो उसे एक सोने का अंडा मिला।

जादुई मुर्गी हर दिन सोने का एक अंडा देने लगी। कई सप्ताह तक ऐसा चलता रहा। जल्द ही वह किसान गाँव में सबसे धनी हो गया। किसान की लालची पत्नी इससे संतुष्ट नहीं थी। एक दिन जब किसान घर पर नहीं

था, तो वह एक बड़ा चाकू ले आई और मुर्गी का पेट काट डाला। वह सोच रही थी कि मुर्गी के पेट से एक साथ सारे सोने के अंडे मिल जाएँगे। जब उसे एक भी अंडा नहीं मिला तो उसे बहुत निराशा हुई। अब उसे हर दिन जो अंडा मिलता था, वह उससे भी हाथ धो बैठी।

** घमंडी बारहसिंगा

एक बारहसिंगा था। वह अक्सर एक तालाब के पास जाया करता था और पानी में अपनी परछाई देखकर अपने आपसे कहता, “मेरे सींग कितने

सुंदर हैं! काश मेरे पैर भी इतने ही सुंदर होते!” एक दिन एक शेर ने उसका पीछा किया। बारहसिंगा घने जंगल की ओर भागा, लेकिन उसके सींग एक घनी झाड़ी में फँस गए। उसे लगा कि उसकी मौत अब पास आ चुकी है। वह अपने सींगों को कोसने लगा।

आखिरकार, उसने अपने मज़बूत पैरों की सहायता से अपने आपको झाड़ी से मुक्त करा लिया। इसके बाद वह अपने मजबूत पैरों से उछलता-कूदता जंगल में भाग गया और शेर से बचने में सफल हो गया।
बारहसिंगा ने अपने कुरूप पैरों को उसकी जान बचाने के लिए धन्यवाद दिया, जबकि उसके सुंदर सींगों की वजह से तो उसकी जान ही जाने वाली थी। वह सोचने लगा कि उसे संकट से बचने के लिए सींगों के बजाय पैरों की अधिक आवश्यकता है। उसके बाद से उसने अपने पैरों को कभी कुरूप नहीं माना।

** हाथ की चिड़िया

एक जंगल में एक शेर रहता था। एक दिन शेर को एक पेड़ के पास एक छोटा-सा खरगोश दिखाई दिया। शेर उसे पकड़ने के लिए गया और उस पर छलाँग मारने ही वाला था कि खरगोश ने उसे

देख लिया और वह जान बचाकर भागा। शेर ने और लंबी छलाँग लगाई और और खरगोश को दबोच लिया। शेर अब उसे खाने ही वाला था कि उसे एक हिरन दिख गया। लालची शेर ने खरगोश को छोड़ दिया और हिरन के पीछे भागा।

हिरन ने शेर को अपने पीछे आता देखा, तो वह लंबी-लंबी छलांग भारता हुआ जंगल में जाकर छिप गया।

शेर खरगोश से भी हाथ धो बैठा और हिरन भी उसकी पकड़ में नहीं आया। वह खरगोश को छोड़‌ने की गलती करने के लिए पछताने लगा।

इसी कारण, ठीक ही कहा गया है कि आकाश में दो चिड़ियों से अपने हाथ की एक चिड़िया बेहतर होती है।

** हंस और मूर्ख कछुआ

एक बार की बात है। एक कछुआ और दो हंस आपस में बहुत अच्छे मित्र थे।

एक साल बारिश बिलकुल नहीं हुई और जिस तालाब में वे रहते थे, वह सूख गया। कछुए ने एक योजना बनाई और हंसों से बोला, “एक लकड़ी लाओ। मैं उसे बीच में दाँतों से दबा लूँगा और तुम लोग उसके किनारे अपनी चोंच में दबाकर उड़ जाना और फिर हम तीनों किसी दूसरे तालाब में चले चलेंगे।”

हंस मान गए। उन्होंने कछुए को चेतावनी दी, “तुम्हें पूरे समय अपना मुँह बंद रखना होगा। वरना तुम सीधे धरती पर आ गिरोगे और मर जाओगे।”

कछुआ तुरंत मान गया। जब सब कुछ तैयार हो गया तो हंस कछुए को लेकर उड़ चले।

रास्ते में कुछ लोगों की नज़र हंसों और कछुए पर पड़ी। वे उत्साह में आकर चिल्लाने लगे, “देखो, ये हंस कितने चतुर हैं। वे अपने साथ कछुए को भी ले जा रहे हैं।”

कछुए से रहा नहीं गया। वह उन लोगों को बताना चाहता था कि यह विचार तो उसके मन में आया था। वह बोल पड़ा लेकिन जैसे ही उसने मुँह खोला, लकड़ी उसके मुँह से छूट गई और वह सीधे घरती पर आकर गिर पड़ा। अगर उसने अपने अहंकार पर नियंत्रण कर लिया होता तो वह भी सुरक्षित नए तालाब में पहुँच जाता।

**बहुमूल्य जीवन

एक बार बोधिसत्व ने हिरन के रूप में जन्म लिया। जंगल का हर जानवर उनकी सुंदरता की प्रशंसा करता था। एक दिन एक राजकुमार शिकार करने उस जंगल में आया।

“यह जंगल शिकार के लिए बहुत अच्छा है,” राजकुमार अपने आपसे बोला।

राजकुमार की निगाह हिरन पर पड़ी। वह अपने घोड़े पर बैठकर उसके पीछे भागा, लेकिन हिरन उससे भी तेज निकला। अचानक राजकुमार का घोड़ा गिर पड़ा और राजकुमार पास की नदी में जा गिरा। राजकुमार को तैरना नहीं आता था। वह सहायता के लिए चिल्लाने लगा। हिरन ने उसकी कातर आवाज़ सुनी तो नदी किनारे आ गया और राजकुमार को खींचकर उसने बाहर निकाल दिया। जब राजकुमार ने यह देखा कि उसकी जान उसी हिरन ने बचाई है, जिसका वह शिकार करना चाहता था, तो वह लज्जित हुआ। उसने संकल्प किया कि अब वह किसी भी जानवर का शिकार नहीं करेगा।

**लालची बंदर

एक बंदर की लोगों के घरों में घुसने और खाने-पीने का सामान ले भागले की बुरी आदत थी। गाँव वाले उससे बहुत परेशान रहते थे। उन्होंने एक मदारी को बुलाकर उससे बंदर पकड़ने को कहा। मदारी ने संकरे मुँह वाली मिट्टी की हँडियों में मूँगफली के दाने रखकर मकानों की छत पर रख दिए।

अगले दिन मदारी ने देखा कि बंदर एक मकान की छत पर पहुँचा है। वह समझ गया कि अब बंदर पकड़ में आने ही वाला है। जब गाँव वालों ने मदारी से उसकी चाल उजागर करने को कहा तो मदारी ने बताया कि बंदर को मूँगफली के दाने बहुत पसंद होते हैं। इसलिए यह बंदर भी दाने निकालने के लिए हँडिया में हाथ डालेगा और मुझी में दाने दबोच लेना लेकिन हँडिया का मुँह सेंकरा होने के कारण उसकी मुट्टी बाहर नहीं निकल पाएगी और उसका हाथ फैसा रह जाएगा। और ऐसा ही हुआ। बंदर अपने लालच के कारण पकड़ा गया।

**सियार और ढोल

एक भूखा सियार भोजन की तलाश में एक खाली पड़े खेत में घूम रहा था। तभी उसे कुछ विचित्र सी आवाज सुनाई पड़ी। भयभीत सियार भागने की तैयारी करने लगा।

वह भागने ही वाला था कि उसने अपने आपसे कहा, “यह पता तो करना चाहिए कि यह कैसी आवाज़ है और कौन इसे निकाल रहा है। मैं जाकर देखता हूँ कि यह आवाज कहाँ से आ रही है।”

सिवार सावधानी से चुपचाप उसी दिशा में आगे बढ़ा, जहाँ से वह विचित्र आवाज़ आ रही थी। वहाँ जाकर सियार को एक ढोल दिखाई दिया। “तो यह ढोल था, जिस पर हवा चलने से पेड़ों की डालियाँ ठकराती हैं तो आवाज निकलती है,” सियार समझ गया। सियार ने चैन की साँस ली। वह ढोल बजाने लगा। उसे लगा कि ढोल के अंदर भोजन भी हो सकता है। वह ढोल में छेदकर उसके अंदर घुस गया। अंदर भोजन न पाकर वह काफी निराश हुआ। उसने अपने आपको यह कहकर साँत्वना भी दी कि कम से कम अब उसे विचित्र आवाज़ का डर तो नहीं रहा।

 

** चतुर किसान

एक बार एक किसान एक बकरी, घास का एक गट्टर और एक शेर को लिए नदी के किनारे खड़ा था। उसे नाव से नदी पार करनी थी लेकिन नाव बहुत छोटी थी और वह सारे सामान समेत एक बार में पार नहीं जा सकता था। किसान ने कुछ तरकीब सोची। वह अगर शेर को पहले ले जाकर नदी पार छोड़ आता है तो इधर बकरी घास खा जाएगी और अगर घास को पहले नदी पार ले जाता है तो शेर बकरी को खा जाएगा।

अंत में उसे एक समाधान सूझ गया। उसने पहले बकरी को साथ में लिया और नाव में बैठकर नदी के पार छोड़ आया। इसके बाद दूसरे चक्कर में उसने शेर को नदी पार छोड़ दिया लेकिन लौटते समय बकरी को फिर से साथ ले आया।

इस बार वह बकरी को इसी तरफ छोड़कर घास के गहर को दूसरी ओर शेर के पास छोड़ आया। इसके बाद वह फिर से नाव लेकर आया और बकरी को भी ले गया। इस प्रकार, उसने नदी पार कर ली और उसे कोई हानी नहीं हुई ।

**आलसी हिरन

एक दिन एक हिरनी अपने बेटे को एक बुद्धिमान हिरन के पास लेकर गई और उससे बोली, “मेरे बुद्धिमान भाई, कृपया मेरे बेटे को भी अपनी जान बचाने की कुछ तरकीबें सिखा दो, ताकि वह कभी संकट में फँसे तो अपनी जान बचा सके।” बड़ा हिरन मान गया। छोटा हिरन बहुत शैतान था और उसका मन दूसरे बच्चों के साथ खेलने में ही लगा रहता था। जल्द ही, वह कक्षा से गायब रहने लगा और उसने बचाव की कोई तरकीब नहीं सीखी। एक दिन, खेलते-खेलते वह एक जाल में फँस गया। जब उसकी माँ को यह पता चला तो वह बहुत रोई। बड़ा हिरन उसके पास गया और उससे बोला, “प्यारी बहना, मुझे दुख है कि तुम्हारा बच्चा जाल में फँस गया। मैंने उसे सिखाने की बहुत कोशिश की थी, लेकिन वह कुछ सीखना ही नहीं चाहता था। अगर कोई विद्यार्थी सीखना ही नहीं चाहे तो शिक्षक उसे कैसे सिखा सकता है!”

यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है।
दोस्तों यहां दी गई जानकारी किताबें, इंटरनेट और मेरे दृष्टिकोण पर आधारित है किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी हूं । किसी भी प्रकार की त्रुटि की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कमेंट में आप अपना बहुमूल्य विचार साझा कर सकते हैं। जिसके लिए मैं आपका हृदय से आभार रहूंगा, धन्यवाद।

 

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